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*मानस विश्वास स्वरूपम।।* दिन-७ दिनांक-४ नवंबर *आठ प्रकार के बोध है ऐसे गुरु की द्रष्टि से हम देखें तो अखिल का दर्शन कर

*मानस विश्वास स्वरूपम।।* दिन-७ दिनांक-४ नवंबर
*आठ प्रकार के बोध है ऐसे गुरु की द्रष्टि से हम देखें तो अखिल का दर्शन कर सकेंगे।।*
*विश्वास निर्विकल्प है शाश्वत है।।*
*तुलसि विवाह के दिन दिव्यता से सिताराम विवाह का उत्सव मनाया गया।।*

रामकथा के सातवें दिन बापू ने बताया कि विश्वास एक है बार-बार गोस्वामी जी ने मानस के सिवा अन्य ग्रंथों में भी कहा है।।जैसे ब्रह्म एक है लेकिन रुचि अनुसार अलग-अलग देखते हैं।किसी ने द्वैतरूप देखा किसी ने अद्वैत रूप में देखा,किसी ने विशिष्टद्वैत रूप में देखा किसी ने शुध्धाद्वैत रूप में देखा किसी ने द्वैताअद्वैत रूप में देखा किसी ने प्रेमाद्वैत के रूप में देखा।। सत्य भी एक है एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति।हमारे ऋषि यों ने हमें स्वतंत्रता दी है कि आप अपनी नजर से भी देखें।।अपनी ही धारा में देखना अपने लिए ठीक है दूसरों पर थोपना ब्लाइंड फेथ है।जैसे पुरानी वार्ता में चार-पांच अन्ध लोग हाथी को देखते हैं और अपनी अनुमति अनुसार अनुभूति बताते हैं।पूर्ण हाथी का परिचय संपूर्ण देखने से ही होता है।। शायद हम अपनी आंखों से देखते हैं तब कुछ न कुछ छूट जाता है। क्योंकि हमारी सोचने की मर्यादा है।हमारे यहां अपने गुरु की आंखों से देखो तो अखिल दर्शन कर सकेंगे यह परंपरा है प्रवाही परंपरा ही नहीं यह प्रेम परंपरा है।।जिस गुरु में आठ प्रकार का बोध हो ऐसा अष्ट स्वभाव युक्त गुरु की आंखों से हम देखे तो बात बने।।यह आंखें जिस में बोध ही है विरोध नहीं, जो आंखें पुजारी बनकर हमें देखें,शिकारी और विकारी बन कर ना देखें। गुरु शाश्वत है नित्य है। रामकृष्ण परमहंस की अर्धांगिनी शारदा मां कहती थी कि रामकृष्ण गए ही नहीं है,ठाकुर का शरीर गया, जाये वो ठाकुर नहीं। तो ऐसे बोध के रूप में अष्ट प्रकार।एक नित्य बोध है,दूसरा है विशुद्ध बोधविग्रह जो निर्विकल्प है।हमारे बोध में विकल्प बहुत होते हैं।अध्यात्म मार्ग में विकल्प दोष है,दुषण है।विश्वास निर्विकल्प है।एक है अमित बोध-जिसकी कोई सीमा नहीं।एक है विरति बोध-जैसा होना चाहिए ऐसा बोध,वेद और पुराण का यथार्थ ज्ञान है वह बोध। एक बोध है घनबोध-बोध की वर्षा और एक है सुबोध-हमारी पात्रता के अनुसार मिले ऐसा।। और एक है सम्यक बोध,और आठवां है भाषा बध्ध किया हुआ बोध।। यह बोध के आठ स्वरूप है।।
कथा प्रवाह में आज तुलसी विवाह के दिन सीताराम जी के विवाह की कथा का गान करते हुए बापू ने कहा की राम और लक्ष्मण जनकपुर में आए हैं,और नगर दर्शन के लिए गए।पूरी जनकपुरी दोनों के रूप में मोहित है और दूसरे दिन राम-लक्ष्मण गुरुजी के लिए पूजा के लिए पुष्पवाटिका में फूल चुनने गए, उसी वक्त सीता जी बाग में गौरी पूजा के लिए गई।। और वहां चार घटना घटी:सिता बाग में गई,स्नान किया,गौरी का दर्शन किया और तब एक सखी मिली कि जो राजकुमार की बात हो रही थी वह बाग में आए हैं।।बापू ने कहा कि संत सभा रूपी बाग है,स्नान किया वो दिल तक पहुंचना है गौरी का दर्शन का मतलब श्रद्धा का दर्शन है और सखी वो गुरु है जो हमारा हाथ पकड़ कर हमें राम तक पहुंचाती है।। हमारी बेटियों और युवकों को बाग में जाना चाहिए लेकिन बेटियां गौरी पूजा करें और युवक गुरु पूजा करें तो रामराज निकट है।। किसी भी बेटी मन चाहे वर प्राप्त करने के लिए सीता जी ने जो स्तुति की यह करें:
*जय जय गिरिवर राज किशोरी।*
*जय महेश मुख चंद्र चकोरी।।*
*जय गज बदन षडानन माता।*
*जगत जननी दामिनी दुति गाता।।*
*नहि तव आदि मध्य अवसाना।*
*अमित प्रभाउ बेदु नहि जाना।।*
*भव भव विभव पराभव कारिणी।*
*बिश्व बिमोहिनि स्वबस विहारिनि।।*
स्तुति की और मूर्ति डोली, मूर्ति मुस्कुराई,मूर्ति बोली और मूर्ति के ऊपर से माला नीचे गिरी। यह संकेत सीता जी को हुआ।।
धनुष यज्ञ हुआ। देश देश के राजा आये, और फिर धनुष भंग का प्रसंग और सीता जी ने राम के गले में वरमाला डाली और सीता विवाह का यह प्रसंग विशाल मात्रा में उपस्थित श्रोताओं ने शालीनता और दिव्यता से राम विवाह प्रसंग का उत्सव मनाया।।

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